रंगमंच तथा विभिन्न कला माध्यमों पर केंद्रित सांस्कृतिक दल "दस्तक" की ब्लॉग पत्रिका.

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

इतिहास बने के कगार पर पहुंच गइल लौंडा नाच - अमितेश कुमार

उम्र के मार से जर्जर भईल ओह शरीर में आजो उहे लोच बा. आंख में चमक बढ़ जाला जस ही केहु नाच के नाम ले लेवेला. शान से रऊआ के बतीयहें कि मुजफ़्फ़रपुर के बाइ जी के कैसे एक बार हार मना देले रहलें. लोग बाई जी के रोक के उनकर नाच के देखे चाहल. केतना इनाम मिलल.

नागा के नाम से मशहुर नागेन्द्र हजरा आ अब नागेन्द्र पासवान के एक जमाना में एरिया में तुती बोले. नाच में भीड़ ला उनकर नाम काफ़ी रहे. कई बेर तो उनका राखे खतरा नाच पार्टियन में मार हो गईल बा. आज नागा केस कटा लेले बांड़े. नाती पोता से भरल घर बा. खेती गृहस्थी करेलें. आ साल में बस एक दिन छठ के दिन कुछ चुनिंदा लोग के घर जा के कोसी लगे नाचेलें . काहे कि बरख-बरख से उ लोग उनका सुख दुख में साझा रहल बा. ‘बाकिर गांव में त बहूत भूप बा लोग’.

नागेन्द्र के जीवन में आज नाच नईखे लेकिन उनकर जीवन नाच से निर्मित भईल बा. लेकिन उनका जीवन आ उनका जीवन जईसन अनेक कलाकार के जीवन के बनावे वाला नाच आज मरनासन्न बा. नाच बिहार आ यु.पी. के कुछ इलाका के प्रसिद्ध नाट्य रूपो ह आ एक जमाना में मनोरंजन के बड़का साधन. भोजपुरी के प्रसिद्ध नाटककार भिखारी ठाकुर के नाट्यदल निर्माण के प्रेरणा में एक ओर जहां लीला नाटक रहे उहे दूसरका ओर नाच. सही में देखल जाव त उ नाच के आपन आकार दिहलें. नाच में जौन पाठ खेलल जाव, उ अपना से तैयार करे लगलें आ एकरा मंच के भी एगो स्थाई फ़र्क दिहलें लेकिन कैसे इ जाने खतरा आईं तनका नाच के रंग रूप देख लियाव.

नाच माने लौंडा नाच. इ विद्या शुरु कैसे भईल ई ठीक ठीक त पता नईखे लगावल जा सकत बाकिर अनुमान लगावल जा सकता. एह विद्या के जन्म ओह सारा लोकनाट्य भा परम्पराशील नाटकन लखा भईल होई जौन संस्कृत नाट्य परंपरा के बंद भईला के बाद सारा भारत में फ़ईलल. एह नाट्यरूपन के दु रूप बा. एगो उ विधा जेमें धार्मिक आधार रहे जैसे- रास लीला, राम लीला, यक्षगान, कूडियाट्टम. इ रूप ज्यादातर मंदिर आ धर्म के सरंक्षण में पलल बढ़ल.

नाच के महत्त्वपूर्ण अंग: पाठ में जोकर

लेकिन दोसर रूप उ नाटकन के बा जे कर धर्म से रिश्ता ओतना ना रहे आ ओकरा के आम जनता अपनईलस. नौटंकी, तमाशा, नाचा, माचा, इत्यादि अईसन नाटय रूप बाड़ सन. नाच भी अईसने नाट्य रूप ह. नाच के उत्पति के कहानी नाचा आ नौटंकी के उत्पति के कहानी से जोड़ल जा सकता. नाचा जौन छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नाट्य रूप ह जेकरा के हबीब तनवीर विश्व में प्रसिद्ध क दिहलें, के उद्भव के कहानी लोग बतावेला. कि नाचा के शुरुआत शादी विवाह के अवसर पर भईल नाच गाना के कार्यक्रम से भईल. बारात ओरात या कहीं कौनो समाज के जुटानी पर लोग के मनोरंजन खतरा नाच गाना होखे. जईसे हारमोनियम , ढोलक और तबला के आगमन होत गईल नाचा के रूप बदलत गईल. खड़ा होके वाद्य बजावे वाला लोग बईठ के बजावे लागल आ रात बितावेला इ महसुस कईल गईल कि खाली नाच गाना से ना काम चली कौनो कहानी जोड़ल जाव. एह से ‘पाठ’ खेले के परंपरा के शुरूआत भईल. कलाकार अभिनय क के कौनो कहानी के प्रदर्शन करे लगलें. नौटंकी के जन्म के कहानी राजकुमारी नौटंकी आ फूल सिंह के कथा से जुड़ल बा. एही कथा के सुनावे के परंपरा धीरे धीरे नौटंकी शैली बन गईल आ एहमें दोसरो कथा सब जुड़ल चल गईल .

नाच, नाचा आ नौटंकी के मिलल जुलल रूप बा. नाच के कहानी के नाचा के कहानी से जोड़ल जा सकता . बिहार आ उत्तर प्रदेश में नाच एगो स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित भईल. एकर विकसित होखे के एगो और कारण इ बतावल जाला कि नौटंकी कंपनी सब एह क्षेत्रन में बहुत यात्रा करे आ ओकर आधार पर स्थानीय लोग आपन टीम बनावल लोग. नाचे गावे के परंपरा, लीला नाटक के परंपरा सब मिला जुला के नाच शुरु भईल होखी.

नाच सब नाट्य रूपन लखा देव वंदना से शुरू होला. ओकरा बाद महिला बनल पुरूष कलाकार लोग गीत गावेला आ नृत्य करेला. इ नृत्य कुछ देर तक चलेला. पहिले नाच में गज़ल, खेमटा, ठुमरी, चैता, कजरी, कुल होखे लेकिन धीरे धीरे फ़िलिम के गीत एह गाना सब के अपदस्थ क देहलन सन. बाद में गा के नृत्य करे के परंपरा में रिकार्डिंग डान्स के परंपरा भी जुट गईल. कुछ देर के बाद जोकर आके झलकी देखावला. उ अपना हास्य व्यंग्य से दर्शक के हंसावेला. जोकर हंसी हंसी में ही गंभीर बात भी कह जाला सन. गंभीर हास्य के जगह अश्लील चुटकुला बाजी लेत गईल. लेकिन नाच में जोकर अईसन किरदार ह जेकरा पर नाच के दारोमदार होला. नाच पार्टी के उ सब से मंहग कलाकार होला. झांकी के बाद पाठ होला जेमें कौनो कहानी के नाटकीय प्रदर्शन होखेला.

पाठ के चुनाव देख के लागेला कि नाच नौटंकी से प्रभावित रहे. काहे कि नाच में भी सुल्ताना डाकु, लैला मजनु, सत्य हरिश्चन्द्र, अमर सिंह राठौड़, इत्यादि के पाठ होखे. इ सब नौटंकी के प्रसिद्ध नाटक हऊअ सन. नाच में रहे वाला लोग भी बतावेला कि किताब कानपुर से आवे. लेकिन खाली नौटंकी तक ना रह के कुछ आउर भी नाटक होखे. जेकर के कभी खुद से भी गढ़ल लोग. जेमें भिखारी आपना नाटक अपने लिखलें. कभी कभी कुछ फ़िलिम के भी नाटकीय पाठ होखे.

नाच के मंच बहुत खुला स्वरूप वाला होला. मुख्यतः एगो शामियाना के अंदर इ होला. शामियाना के सरंचना अईसन होला कि ओकर भीतरी घेरा में अंदर चार गो बांस एह तरे लागल रहेला कि एगो वर्ग बने. इहे वर्ग नाच के मंच ह. लगभग चारु ओर से दर्शक बईठेला. एक ओरी कलाकार लोग के प्रवेश प्रस्थान के रास्ता छोड़ल रहेला. नाच के वाद्य यंत्र भी उहे सब बा जे भारत के और लोकनाटकन के. जैसे कि हरमुनिया, नाल, नगाड़ा, क्ल्येरनाट, बैंजो..बाद में ड्रम सेट भी एह वाद्य यंत्र में जुड़ गईल. नगाड़ा नक्कारा के कहल जाल जेकर आवाज से नाच के शुरूआत होखे के पता चल जाला.

अइसन दृश्‍य भी आम रहे नाच में

नाच में तीन तरह के कलाकर होले. एगो नर्तकी. नर्तकी पुरुष ही बनेला. आज भी नाच में स्त्री के प्रवेश नईखे भईल. नर्तकी बनावेला पहिले नाच के मुंशी आ मालिक लोग गांव -गांव घुम के लईका चुने लोग. किशोर लईका. फ़ेर ओकरा के ट्रेनिंग देवे लोग. एगो दोसरा यौनिकता के धारण करते हुए भी इ लोग सामान्य पुरुष जीवन जिये ला लोग. नर्तकी जेकरा के लौंडा भा नचनिया कहल जाला नाच के प्रमुख भाग ह. नचनिया लोग के नॄत्य आ गायन दुनो कला में दक्ष होखे के पड़ेला,. दोसर. कलाकर होला जेकरा के एक्टर कहल जाला. नाच में अक्सर उम्रदराज नचनिया लोग एक्टर बन जाला. कुछ स्वतंत्र रूप से भी एक्टर बने ला लोग. एक्टर लोग के भी गायन, नृत्य आ अभिनय के प्रशिक्षण दिहल जाला. तेसर होला लोग समाजी जो साज बजावेला लोगा आ नाच के समान ढोए वाला लोग. एह पुरा टीम के जिम्मा मालिक आ मुंशी के होला. मालिक द्वारा सालाना के अनुबंध पर समाजी, नर्तकी आ एक्टर के राखल जाला. टीम के कमाई के मुख्य स्रोत ह लगन आ पर्व त्योहार के महीना. बाकीर समारोह आ पारिवारिक उत्सव के मौका पर भी नाच पार्टी के बोलावल जाला. एहे मौका पर नाच पार्टी साटा बान्हेला तय पैसा पर आ आयोजक किहां जाला. एह तरह से इ पूरा व्यावसायिक रंगमंच बा काहे कि ए कलाकारन के कमाई नाच से होला. साल के कुछ महिना खासकर बरसात के महिना अभ्यास के महीना ह. जेमे नाच दल मिलके अभ्यास करेला. एही अभ्यास के बाद साल भर प्रदर्शन होला. पहिले मुंशी लोग के काम अभ्यास करावल रहल ह.

समय के साथ एह लोक रंगमंच पर बहुत बदलाव आईल बा. टेक्नोलजी, आर्केस्ट्रा, मनोरंजन के बदलत परिभाषा, वैश्वीकरण इत्यादि के एक साथ प्रहार से एह मंच के शामियाना उखड़े लागल बा. अपना के बचाव के लेल इ नाच रूप हर तरह के समझौता कईलक. अश्लीलता के आगमन एतना भईल एमें कि एकर सामान्य दरशक भी ऐसे धीरे धीरे दूर हो गईल बा. आर्केस्ट्रा एह मंच के बहुत नुकसान देहलस. आर्केस्ट्रा के अईला के बाद पुरुष नर्तकी के मुकाबला महिला नर्तकी से हो गईल. आ नारी देह के तुलना में पुरूष देह के भाव कम हो गईल. नचनिया से बढ़्त छेड़-छाड़, सामाजिक अस्वीकृति से एह पेशा के कोई नईखे अपनावे के चाहत. मंहगाई के एह दौर में आर्थिक सुरक्षा के अभाव भी कलाकारन के हड़कावे के कारण बा. धीरे धीरे नाच पार्टी बंद होत जाता. जे चलता उ जैसे तैसे चलता. पहिले के सामंती मानसिकता के लोग आ कम आय वाला लोग भी एह पार्टी के बोलावे लेकिन अब इहो लोग नाच के नईखे बोलावत.

पाठ चालू बा

सरकार के भी एह नाट्य रूप पर कौनो ध्यान नईखे. ओकर कारण बा समाज में एकरा प्रति लोग के भाव. एक जमाना में मनोरंजन के मुख्य् स्रोत रहल नाच से आज लोग अपना के जोड़े में अपन तौहीन बुझता. आर्केस्ट्रा आ डीजे के जमाना में नाच के के पुछता. आ जौन समाज में इ पनपल ओही समाज के लोग जब एकरा से पीछा छोड़ावता, तब और केहु का करी. एकरा के बचावे ला भी केहु के ध्यान नईखे. आजकल के जमाना में परंपरा के बचावे के के चाहता?

फेर एक बेर नागा के बात. जीवन भर नाच से नाम आ धन कमाये वाला नागा के ओकर घर के लोग ही जीवन के उत्तरार्ध में उपेक्षित कईलक आ ताना देलक. इ जनला के बाद भी कि उनकर आधार नाच बा. आज ओ लोग के लाज लागता इ कहाये में कि उनकर बाबुजी नचनिया हऊएं. लईका लोग के एह भावना ला समाज जिम्मेदार बा. जे एगो कलाकार के कलाकार के इज्जत नईखे देत. ओकर नचनियापन आ जाति ओकर पहचान बन गईल बा. ओकर कला के कौनो मोल नईखे. भोजपुरिया समाज के जौन क्षरन भईल बा ओमे का इ मासिकता जिम्मेवार नईखे?

का बात बा कि एही विधा से भोजपुरी ठाकुर के महान कह के गुण गान कईल जाता लेकिन उनका समाज के अधिकांश लोग के हंसी के पात्र मान के तिरस्कृत कईल जाता. वैसे भिखारी के कम तिरस्कार ना भईल. लेकिन उनकर मूल्य लोग बूझलक. एह कलाकारन के का होई…? नागा हमरा से पुछेलें कि नाच के का होई? हमनी के सीखल बुद्धि के का होई? हम एह सवाल पर उनका भूलिया दिलें काहे कि जवाब नईखे… खोजे के बा!

नाच पर खोजला से भी कौनो किताब ना मिली. कुछ अनुभव, कुछ देखल नाच, कलाकारन से बातचीत पर इ लेख आधारित बा. एह लेख के परिष्कार ला सुझाव आवश्यक बा. नाचा के विकास जाने में अनुप रंजन पांडेय जी से बातचीत सहायक भईल. जिनकर नाचा पर शोध बा. नौटंकी ला कैथरीन हेन्सन एगो किताब लिखले बाड़ी. चौमासा पत्रिका से भी एक आध गो लेख से सहयोग मिलल. कोसिस होई कि इ लेखन शृखंला में होखे. प्रतिक्रिया के इंतज़ार.

अमितेश दिल्‍ली युनिवर्सिटी से रिसर्च कर रहे हैं। रंगमंच, सिनेमा और साहित्य में इनकी ग‍हरी दिलचस्‍पी है. बतौर अमितेश किताबों के बाहर की दुनिया में सीखने कि लिये ज्यादा कुछ है …’ इनसे amitesh0@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.
सरोकार से साभार

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